इक बात संभलने तक
इक उम्र गुजरने तक
इक आह ठहरने तक
इक ज़ख्म के भरने तक
ये धडकन संभलने तक
मुझे होश न दे या रब
या अब होश ही दे या रब
इस जान के जाने तक
शहनाई के ताने तक
उसे लौट ना आने तक
इस दिल को समझाने तक
कुछ और बहाने तक
मुझे होश न दे या रब
या अब होश ही दे या रब
इक दर्द-ए-समन्दर तक
हर शाम के मंज़र तक
हर सुबह के खंज़र तक
ज़ज़्बों के बवंडर तक
मुझे अपने अंदर तक
मुझे होश न दे या रब
य अब होश ही दे या रब
"आतिशमिजाज़"
Monday 2 November 2009
Monday 26 October 2009
हां इसी गम को दिल की तलाश थी
तु युं ही सितम ये ढाये जा
मैं युं ही नालाकश रहुं
तु युं ही मुस्कुराये जा
तु चारागर है मेरा हबीब
तु मुझको ये दिन दिखलाये जा
मैं खुन-खुन होता रहुं
तु युं ही खंजर चलाये जा
मुझे अपने दिल कि फ़िक्र न दे
मुझे अपना दुश्मन बनाये जा
मेरे लब पे आह ना देख ज़रा
बस युं ही मुझे रुलाये जा
ये लहु भी आंख से गिरेंगे ठहर
बस युं ही मुझे गिराये जा
"आतिशमिज़ाज"
तु युं ही सितम ये ढाये जा
मैं युं ही नालाकश रहुं
तु युं ही मुस्कुराये जा
तु चारागर है मेरा हबीब
तु मुझको ये दिन दिखलाये जा
मैं खुन-खुन होता रहुं
तु युं ही खंजर चलाये जा
मुझे अपने दिल कि फ़िक्र न दे
मुझे अपना दुश्मन बनाये जा
मेरे लब पे आह ना देख ज़रा
बस युं ही मुझे रुलाये जा
ये लहु भी आंख से गिरेंगे ठहर
बस युं ही मुझे गिराये जा
"आतिशमिज़ाज"
Tuesday 13 October 2009
जो मैं खामोश-लब हुआ तो हुआ वो बदगुमां और
जो मैंने तर्क-ए-तमन्ना की तो हुआ वो मेंहरबां और
हज़ारों साल मुहब्बत चाक दामन फ़िरती है
कहां मिलते हैं जहां में तुझसे हमजुबां और
खुदा जाने दिल कुछ कम क्युं दुखता है इन दिनों
दे कोई गम-ए-जांविदा दे कोइ सोज़-ए-निहां और
वाए कयामत के वो कहते हैं "वो ना समझेंगे बात मेरी
दे और दिल उनको जो न दे मुझको जुबां और"
जो मैंने तर्क-ए-तमन्ना की तो हुआ वो मेंहरबां और
हज़ारों साल मुहब्बत चाक दामन फ़िरती है
कहां मिलते हैं जहां में तुझसे हमजुबां और
खुदा जाने दिल कुछ कम क्युं दुखता है इन दिनों
दे कोई गम-ए-जांविदा दे कोइ सोज़-ए-निहां और
वाए कयामत के वो कहते हैं "वो ना समझेंगे बात मेरी
दे और दिल उनको जो न दे मुझको जुबां और"
तनकीर वाहिदी "हन्नान"
Wednesday 7 October 2009
आओ एक बार
न खातिर-ए-विसाल फ़कत अयादत ही सही
मुझसे फ़िर बांध कोई अहद-ओ-पैमां "हन्नान"
के भूल जाना तेरी कोई आदत ही सही
तु जो वफ़ाजु ना हुआ तो जफ़ाजु हो क्युंकर
कर मुझे कत्ल के फ़िर कोई शहादत ही सही
देख दिल की जानिब किसी नज़र से सही
दिल जो दिल ना हुआ कोई मलामत ही सही
आ दे मुझे इल्जाम तपाक नज़रों का सही
देख बेपर्दगी से मुझे फ़िर कोई कयामत ही सही
तनकीर वाहिदी "हन्नान"
Wednesday 29 July 2009
To be continued.... (still writing)
मैं और दिल-ए-बिस्मिल थे कोई सहारा ना था
मिल गई दुनिया तो फ़िर कोई हमारा ना था
हम सर-ए-साहिल थे उसने हवाले तुफ़ां किया
ज़िन्दगी टकराती रही और कोई किनारा न था
उनके दिल में मैं था, दुनियां थी और मेहमां भी थे
हमको इस दिल में सिवा उसके कोई गंवारा ना था
.तनकीर वाहिदी "हन्नान"
मिल गई दुनिया तो फ़िर कोई हमारा ना था
हम सर-ए-साहिल थे उसने हवाले तुफ़ां किया
ज़िन्दगी टकराती रही और कोई किनारा न था
उनके दिल में मैं था, दुनियां थी और मेहमां भी थे
हमको इस दिल में सिवा उसके कोई गंवारा ना था
.तनकीर वाहिदी "हन्नान"
Saturday 25 April 2009
चलो यूं ही सही
रस्म-ओ-रवायात का नाम है ज़िन्दगी तो चलो यूं ही सही
इक सफ़र का नाम है ज़िन्दगी तो चलो यूं ही सही
वाए नाकामि-ए-शौक के दिल ज़र्फ़ हुआ जाता है कहीन
अपना इश्क हुआ नमरूद की बन्दगी तो चलो यूं ही सही
तेरा नाम मेरे नाम के साथ आ जाये तो कयामत है
अब दिल को भी है शर्मिन्दगी तो चलो यूं ही सही
तेरे साथ जीयें तो कैसे तेरे बिन जियें तो क्युं?
तुने ही बक्शी है ये आवारगी तो चलो यूं ही सही
अपनी फ़ितरत में है उसे पाक नज़रों से चुमना
तुम जो कहते हो दिवानगी तो चलो यूं ही सही
* "आतिशमिज़ाज"
इक सफ़र का नाम है ज़िन्दगी तो चलो यूं ही सही
वाए नाकामि-ए-शौक के दिल ज़र्फ़ हुआ जाता है कहीन
अपना इश्क हुआ नमरूद की बन्दगी तो चलो यूं ही सही
तेरा नाम मेरे नाम के साथ आ जाये तो कयामत है
अब दिल को भी है शर्मिन्दगी तो चलो यूं ही सही
तेरे साथ जीयें तो कैसे तेरे बिन जियें तो क्युं?
तुने ही बक्शी है ये आवारगी तो चलो यूं ही सही
अपनी फ़ितरत में है उसे पाक नज़रों से चुमना
तुम जो कहते हो दिवानगी तो चलो यूं ही सही
* "आतिशमिज़ाज"
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