हजार मिन्नतें की दिल ने तु मेहरबां ना हुआ
न हुआ मरीज-ए-गम का आखिर दरमां ना हुआ
हम थे बादशाह-ए-इश्क गर्चे बे तख्त-ओ-ताज रहे
तुम क्या रुठे कोरबख्तों का जमीं ना हुआ आसमां ना हुआ
हम के जान देकर भी कोई एहसानमंद रहे
और तु के कत्ल करके भी पशेमां ना हुआ
न हुआ मरीज-ए-गम का आखिर दरमां ना हुआ
हम थे बादशाह-ए-इश्क गर्चे बे तख्त-ओ-ताज रहे
तुम क्या रुठे कोरबख्तों का जमीं ना हुआ आसमां ना हुआ
हम के जान देकर भी कोई एहसानमंद रहे
और तु के कत्ल करके भी पशेमां ना हुआ
तनकीर वाहिदी "हन्नान"
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