जो मैंने तर्क-ए-तमन्ना की तो हुआ वो मेंहरबां और
हज़ारों साल मुहब्बत चाक दामन फ़िरती है
कहां मिलते हैं जहां में तुझसे हमजुबां और
खुदा जाने दिल कुछ कम क्युं दुखता है इन दिनों
दे कोई गम-ए-जांविदा दे कोइ सोज़-ए-निहां और
वाए कयामत के वो कहते हैं "वो ना समझेंगे बात मेरी
दे और दिल उनको जो न दे मुझको जुबां और"
तनकीर वाहिदी "हन्नान"
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