Monday 2 November 2009

मुझे होश न दे या रब

इक बात संभलने तक
इक उम्र गुजरने तक
इक आह ठहरने तक
इक ज़ख्म के भरने तक
ये धडकन संभलने तक
मुझे होश न दे या रब
या अब होश ही दे या रब

इस जान के जाने तक
शहनाई के ताने तक
उसे लौट ना आने तक
इस दिल को समझाने तक
कुछ और बहाने तक
मुझे होश न दे या रब
या अब होश ही दे या रब

इक दर्द-ए-समन्दर तक
हर शाम के मंज़र तक
हर सुबह के खंज़र तक
ज़ज़्बों के बवंडर तक
मुझे अपने अंदर तक
मुझे होश न दे या रब
य अब होश ही दे या रब

"आतिशमिजाज़"

1 comment:

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